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वो

Meri Adhuri Kavita
Meri Adhuri Kavita
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वो चाँद की बातें करती थी,
घंटों चाँद को देखा करती थी,
हम तो धूल है धरती के,
क्या चाँद को देखें धरती से,
मस्तानी आँखों में,
कभी ना देखा था आंशू,
आज समंदर है उनके,
आँखों में या आंशू,
जी चाहता है तोड़ दूँ,
दुनिया के सारे नाते,
कुछ गम मेरे भी थे,
कुछ उनके भी मैंने बांटे,
ज़ख्मों की वजह कोई और ना था,
जिसने दिया मकसद साहिल,
क्या तोड़ के ज़माने की रश्में,
जीने में कोई मुस्किल है,
हाय तोड़ दिया तूने दिल ऐसा,
की आंशू पीना मुस्किल है,
कल ही की बात है जैसे,
जब हम तुम मिला करते थे,
तब लगता था जन्मों का बंधन,
जब बातें हमसे करते थे,
बातों में उनके जादू था,
वो जादू भी क्या जादू था,
घंटों का पता नहीं,
जब बातें होती थी उनसे,
अब हर लम्हा जैसे,
कांटें बनकर चुभता है,
कोई और ना आता था सपनो में,
बस तेरा ही एक सपना था,
टूट गया सपना मेरा,
छूट गया साथी कोई अपना,
अब क्या लिखू आगे,
मैं डूब गया साहिल पे था.
–धीरज

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