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परेशान सा हो गया हूं आज कल मैं,
इन दंगों और फसादों से,
हिन्दू-मुस्लिम की बातों से,
जात पात के भेदों से,
मौलवी से और पंडित से,
रंगों से और रूपों से,
चलनी और सूपों से,
गरीब दुखिया के भूखों से,
इन मंदिर से और मस्ज़िद से,
इस राम रहीम के बखान से,
झूठी झूठी मान से,
लड़ती हुई ब्रम्हांड से,
चीन और जापान से,
पाकिस्तान के नाम से,
भूखी अकेली शाम से,
इन चारों धाम की शान से,
इस सोने से, इस रुपयों से,
बेमतलब की बकवास से,
झूठी मूठी आस से,
किसी की इतने प्यास से,
गैर जरूरी ज्ञान से,
इन गाली से, इन गुत्तों से,
इंसानी कुत्तों से,
इन रातों से, कुछ बातों से,
अपनी खुद की सांसों से,
विचारों से आती बासों से,
अस्पताल में बिकती लाशों से,
इन मंहगी मंहगी दवाओं से,
बिन मन के दुआओं से,
उजड़े उजड़े गांव से,
नारियल पेड़ के छांव से,
भद्दे भद्दे कपड़ों से,
आवारा घूमत लड़कों से,
टूटे फूटे सड़कों से,
परेशान सा हो गया मैं…
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